जपूं मैं राधेकृष्ण का नाम…!!!!
जपूं मैं राधेकृष्ण का नाम…
वृन्दावन हैं जिसका धाम।।
रूप है निलांवर, घुंघराले से वो काले काले केश…
मोर पंख सर पे साझे, पीताम्बर वाला वेश।।
कमल जैसे नयन, अधरों पर मुरली…
सूरत है मेरे कान्हा की सांवली।।
चोरी कर करके जिसने खाया था माखन…
सारथी भी बना अर्जुन का जहां हुआ था महाभारत का रण।।
मनुष्य रूप में किया जिसने सभी श्रापों का पालन…
संपूर्ण सृष्टि का करता है वो ही संचालन,
वो मुरलीधर करता है सुदर्शन धारण।।
मेरा कान्हा तो कण कण में मौजूद है…
भक्तों की भक्ति का उस कृष्ण कन्हैया से ही वजूद है।।
कृष्ण रौशनी की किरण है…
विपत्ति में आनन्द का वो ही कारण है।।
न हो राधे कृष्णा का नाम जिह्वा पर तो जीवन व्यर्थ है…
कृष्ण कृष्ण जप लिया करो कृष्ण स्वयं ही अर्थ है।।
कृष्णा है गीता का सार…
कृष्णा है जीवन का आधार।।
वो है मनुष्य के कर्मों का दर्पण…
मैं तो हूं न्यौछावर कृष्ण भक्ति में,
मेरा तो सर्वस्व है उसको अर्पण।।
जपूं मैं राधे श्याम, राधे श्याम…
करूं मैं बारंबार कोटि-कोटि प्रणाम,
वृन्दावन है जिसका धाम।।।।
– ज्योति खारी