#जन_गण_मन_की_बात_करो_मत,#करनी_है_जब_मक्कारी!!
#जन_गण_मन_की_बात_करो_मत,#करनी_है_जब_मक्कारी!!
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जन-गण-मन की बात करो मत,करनी है जब मक्कारी|
बन्धु! हमको विदित है इतना, सत्ता है तुमको प्यारी||
गिद्ध लोमड़ी श्वान सुअर या,
खल श्रृंगाल कहें तुमको|
देकर इतनी उपमाएं हम,
कैसे आज सहें तुमको|
गिरगिट ने भी रंग बदलना,
आप सभी से पाया है|
मोटी चमड़ी के स्वामी तुम,
खच्चर जैसी काया है|
झेल रही है जनता तुमको, यह है उनकी दुस्वारी|
जन-गण-मन की बात करो मत, करनी है जब मक्कारी||
स्वर्णिम है इतिहास हमारा,
राम राज्य है परिचायक|
अपने अन्तर्मन से पूछो,
क्या तुम हो इसके लायक|
भीष्म प्रतिज्ञा थाती अपनी,
तुम मिथ्या के अनुगामी|
संतो की यह भूमि तपोवन,
पर तुम हो लोलुप – कामी|
शर्मिंदा इतिहास आप से, मंत्री- संत्री अधिकारी|
जन-गण-मन की बात करो मत, करनी है जब मक्कारी||
धन्य धरा यह पाण्डव जन की,
बने धर्म के संरक्षक|
उसी धरा पर शासक बनते,
कितने विषधारी तक्षक|
सर्वधर्म – समभाव हमारे,
संविधान की सुंदरता|
लेकिन आकर बाँट रहे तुम,
केवल आज अराजकता|
देख रही जनता गुम – सुम चुप,चले नहीं वस; लाचारी|
जन-गण-मन की बात करो मत, करनी है जब मक्कारी||
नेताजी, आजाद व बिस्मिल,
गाँधी और पटेल जहाँ|
वैसी पावन धन्य – धरा पर,
उपज रहे नासूर यहाँ|
राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह,
हर्षित फाँसी झूल गये|
राष्ट्र शहीदों का यह भारत,
बोलो कैसे भूल गये|
लहुलुहान है आज शहादत, देख न पाते अपकारी|
जन-गण-मन की बात करो मत, करनी है जब मक्कारी||
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’