जन जागृति
क्यों सत्ता पर थोप रहे हो, गलती बार बार कर डाली।
स्वयं मूर्खता पाठ याद कर,सदा नींद की गोली खाली।।
पाँच नहीं दस नहीं वर्ष सत्तर तक तुमने इनको झेला।
चुसा खून हड्डियाँ बची जब,तब सत्ता से दूर धकेला।।
कितनी बार जगाया तुमको,किन्तु नींद से जगा न पाये।आज होश जब आया तुमको,तब हाथों के सुये उडा़ये।।
अब स्वदेश की आन बचाने, अटल शिष्य तुम ले आये हो।
जब ढा़ँचा भी लगा टूटने ,तब तुम सेवक को लाये हो।।
जागो जागो सो मत जाना,नयी क्रांति तुमको लानी है।
बहुत शांति की बात कर चुके,कोई नहीं तेरा सानी है।।
आँख चोर की पड़ नहि पाये,याद तुम्हें रखना होगा।
भूल न जाना दुराचार को ,सत्तर सालों तक भोगा।।
अटल सत्य है घोटालों ने , देश खोखला कर डाला।
घोटाला करने वालों को , हमने पहनायी माला।।
पुनः लौट आने न पायें , देशद्रोह जो करते हैं।
केसर की मादक घाटी में ,उग्रवाद को भरते हैं।।
माँफी के बदले इनको तो फाँसी सजा सुनाना है।
गद्दारों की सजा मौत है , दुनियां को दिखलाना है।।
जन जागृति का बिगुल बजा दो,सेवक सत्तधारी हो।
जालसाज मक्कार चोर हो , तो लतवार दुधारी हो।।
जय हिन्द! जय भारत !!
मौलिक व स्वरचित रचना,
रचनाकार~कौशल कुमार पाण्डेय “आस”,आशुकवि।
बीसलपुर, कार्यकारी अध्यक्ष- जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पंजी०संख्या – २२६(उत्तर प्रदेश)