जन जन बेसहारा
**** जन जन बेसहारा *****
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हाथों में लिया हुआ झोला,
कहते सब जन उसको मौला।
बातों से बना जगत भोला,
विष जन गण मन अन्दर घोला।
झूठ का भरा पड़ा पिटारा,
भक्तों को भाया बहुत न्यारा।
तंत्र मंत्र का ले कर सहारा,
हो गया जन जन बेसहारा।
कैसा विकट यह काल आया,
निकट कोई जन न आ पाया।
भक्ति शक्ति का दे कर नारा,
खत्म कर दिया भाई चारा।
कैसी है यह दुर्गामी नीति,
वश में नहीं स्नेह और प्रीति।
सन्यासी को उठाना झोला,
पीछे फिर काहे का रोला।
मनसीरत बात करे सियानी,
हाल यही राजा या रानी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)