Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 May 2023 · 7 min read

जन्म नही कर्म प्रधान

जन्म नहीं कर्म प्रधान –

वैशाख कि भयंकर गर्मी चिचिलाती दोपहर कि धूप सड़के विरान जैसे प्रकृति ने कर्फ्यू लगा रखा हो ।

सभी लोग गर्मी और लू के प्रकोप के डर से अपने सपने घरों में कैद भयावह गर्मी से कुछ राहत कि आश एव शाम ढलने के इंतजार में घरों में कैद लोग अवकाश का दिन रविवार था।

ऐसे में विकास सड़क पर अपनी कार लेकर फर्राटे भरता मॉ विंध्यवासिनी के दरवार में पहुंच गया विकास उन दिनों सरकारी सेवा में अधिकारी के रूप में मिर्जापुर जनपद में ही कार्यरत था।

विकास मॉ विंध्यवासिनी मंदिर परिसर में अपनी कार बाहर किनारे खड़ी करता हुआ पहुंच गया औऱ सीधे गर्भ गृह में माईया का दर्शन एवं मंदिर की परिक्रमा करने के मन्दिर प्रांगण के दूसरे भाग पहुंचा जहां उसने देखा कि दो तीन लोग एक संत के साथ तस्बीर खींच रहे है औऱ पूरा मंदिर परिसर उन लोंगो के अतिरिक्त खाली था या यूं कहें वीरान था ना कोई दर्शनार्थी नज़र आ रहा था ना ही कोई पुजारी या पंडा जबकि कोई भी मौसम हो स्थिति परिस्थिति हो माईया विंध्यवासिनी के दरवार में कम से कम दो चार सौ दर्शनार्थियों कि भीड़ अवश्य रहती है।

विकास को समझते देर नही लगी कि हो न हो कोई न कोई खास कारण है जिसके चलते मंदिर में कोई नही है ।

तभी अचानक क्रोधित स्वर में आवाज आई तुम कौन और कैसे तुम मंदिर में प्रवेश कर गए?

मंदिर प्रशासन ने किसी भी व्यक्ति के प्रवेश को बंद कर रखा है जब तक मैं मंदिर परिसर में हूँ विकास अक्सर मंदिर जाता रहता था और उसे मंदिर प्रशासन से जुड़े लगभग सभी लोग जानते पहचानते थे अतः मंदिर में जाते समय विशेष परिस्थिति के कारण भी उंसे किसी ने नही रोका या यह भी हो सकता है कि भयंकर गर्मी में लोग अपने अपने सुरक्षित आशियाने में रहे होंगे उसे मन्दिर में जाते ध्यान ही न दे पाए हों।

विकास को लगा यह विचित्र वेश भूषा का व्यक्ति विचित्र इसलिये कि उनके सर पर बाल बहुत विचित्र थे जिसे देखते ही उस व्यक्ति कि पहचान अलग प्रतीत हो रही थी विकास ने उस अद्भुत व्यक्तिव के क्रोधित स्वर को सुनते ही बड़ी विनम्रता से पूछा महाराज मंदिर जैसे पावन स्थल पर प्रवेश के लिए किसी कि अनुमति कि क्या आवश्यकता ?

इतना सुनते ही वह व्यक्ति अत्यधिक क्रोध में बोले तुम्हे दिखता नही इस समय मेरे एव मेरे शिष्य के परिजन के अतिरिक्त मंदिर परिसर में कोई मौजूद नही है ऐसा इसलिये है कि मैं दर्शन पूजन बिना अवरोध के कर संकू।

विकास ने जबाब स्वभाव के अनुसार बोला महाराज दर्शन पूजन तो आपका सम्पन्न हो चुका है और आप भी अपने शिष्यों के परिजन के साथ फोटो खिंचवा रहे है तो मेरे आने से व्यवधान क्यो? इतना सुनते ही उसके साथ उनके शिष्य परिवार के आये सदस्य आग बबूला हो गए औऱ बोले क्या आपको पता नही कि पुट्टापर्थी से सत्य श्री साईं महाराज हमारे यहां विवाहोत्सव में भाग लेने हेतु पधारे है हम लोग ही हेतु विवाहोपरांत महराज को लेकर माईया के दर्शन हेतु आये है इसी कारण मन्दिर प्रशासन ने विशेष व्यवस्था कर रखी है और इनके मन्दिर में रहते सामान्य जन का प्रवेश बन्द कर रखा है जिसके कारण मंदिर परिसर को खाली कराकर सिर्फ महाराज श्री श्री सत्य साईं महाराज के लिए ही प्रवेश अनुमति दी है।

महराज एवं हम लोगों के जाने के बाद मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया जाएगा इतना सुनते ही विकास महाराज सत्य श्री साईं बाबा कि तरफ़ मुखातिब होते हुए बोला कि महाराज आप तो संत विद्वत एव सनातन परम्पराओं के युग पुरुष महापुरुष जैसे है आपको नही लगता कि आपके शिष्यगण माता विध्यवासिनी जो आदि शक्ति स्वरूपी देवी है के दर्शन आशीर्वाद को ही विशेष सामान्य श्रेणी में बांट रहे है ?
क्या ईश्वर के द्वारा इस प्रकार का विभाजन उसकी आराधना के लिए किया गया है क्या ?

सत्य श्री साई महाराज बोले आप कौन है ?

विकास ने बड़ी विनम्रता पूर्वक जबाब दिया महराज मै आम जन सामान्य जन सत्य श्री साईं महाराज बोले नही ईश्वर के दरवार में कोई भेद भाव अमीर गरीब ऊंच नीच के आधार पर नही होता ईश्वर समस्त ब्रह्मांड के सभी प्राणियों के लिए समान भाव रखता है उसके लिए कोई अंतर नही है उसके लिए अंतर है तो सिर्फ भक्ति भाव का जिसके कारण वह विभेद कर सकता है।

इतना सुनते ही विकास ने महराज सत्य साईं से प्रश्न किया महराज तब तो आपके लिए भी माता का मंदिर परिसर एक साधारण व्यक्ति कि तरह ही होना चाहिए ?

और आपको भी सामान्य लोगों के साथ ही माता का दर्शन करना चाहिए था क्या जरूरत थी इस भयंकर लू गर्मी में की मंदिर परिसर को आपके पूजन दर्शन के लिए खाली करा दिया जाय और जाने कहाँ कहाँ से देश के कोने कोने से माता के भक्त इस भयंकर जानलेवा लू कि गर्मी में दर्शन हेतु बाहर खड़े तपती धूप में मक्के के भुट्टे कि तरह भून रहे है और आप संत शिरोमणि जो जगत कलयाण हेतु ही जीवन जीते है माता के दर्शन में समाज श्रेणी के पोषक है।

कुछ क्रोधित होते हुए बोले नौवजवान तुम्हे पता ही नही है मैं स्वंय साईं बाबा का अवतार हूँ और उनका अंश हूँ जिसे दुनिया आदि अवतार मानती है और पूजती है ।

विकास ने कहा महराज तब तो आप भी स्वंय ईश्वरीय अंश साईं बाबा के अवतार है आप को तो आम जन कि इस भयंकर ज्वाला सी गर्मी में जो भारत के बिभन्न हिस्सों से माता के दर्शन हेतु आये है और आपके कारण घण्टो से बाहर मंदिर आम जन हेतु खुलने की प्रतीक्षा में जीवन को जोखिम में डाले है कि पीड़ा दर्द का एहसास अवश्य होगा प्रभु ।

हे नाथ आप स्वंय ईश्वर अवतार होते हुए जो आप स्वंय कह रहे है यह भी जानते है कि ब्रह्मांड के प्रत्येक प्राणी में अवस्थित चैतन्य सत्ता जिसे आत्मा के स्वरूप में सैद्धांतिक एव अन्वेषण उपरांत सत्य के रूप में ईश्वर रूप या अंश के रूप में ही स्वीकार किया जाता है अर्थात इस प्रकार तो ब्रह्मांड का प्रत्येक प्राणी ईश्वर अंश आत्मा के साथ ही अवतरित है एव कर्मानुसार काया में भोग को भोगता जीवन सृष्टि में विराजमान है ।
इतना सुनते ही सत्य श्री साईं जी महाराज को अंदाजा लग गया कि उनके सामने जो नौवजवान है वह स्वंय साधारण या सामान्य नही है वह कुछ सोच कि मुद्रा में थे तभी उनके साथ आये शिष्य परिजन के लोग कुछ बोलना चाह रहे थे उन्होंने मना करते कहा आप लोग शांत रहे मुझे इस नौजवान से बात करने दे वास्तव में जो भी यह नौजवान कह रहा है वही प्रसंगिक एव प्रमाणिक सत्य है।

इसी बीच विकास बोला महाराज साईं बाबा तो सम्पूर्ण जीवन आम जन कि पीड़ा दर्द दुःख के लिए ही अपनी मानवीय काया के जीवन को समर्पित कर दिया था तो उनका सत्य अंश अपने मूल के विपरित आचरण करते हुए कैसे उनका अवतार कह सकता है या दुनिया को कैसे विश्वास करना चाहिए ?

विकास के द्वारा प्रश्नों को सुन कर सत्य श्री साईं महराज जी बोले नौजवान आओ बैठो हम तुमसे धार्मिक संवाद करना चाहते है विकास बोला महराज बाहर लोग चिलचिलाती गर्मी से जीवन कि जंग लड़ते हुए माईया के दर्शन हेतु खड़े है हम आप और कुछ देर धार्मिक संवाद में बिता देंगे तो उनको और भी पीड़ा कि अनुभूति होगी जिसे ना तो मॉ विंध्यवासिनी चाहती है या चाहेंगी ना ही यह ईश्वरीय सत्य का सत्य होगा ।

विकास के इतना कहने के बाद भी सत्य श्री साईं बाबा ने विकास को प्रेरित किया कि वह कुछ आध्यात्मिक संवाद करे इस बीच उनके शिष्य के परिजन विकास एव महराज के संवाद को बड़े को से सुन रहे थे ।

विकास को लगा कि इतने बड़े श्रेष्ठ विद्वान संत एव भारतीय जन आस्था के केंद्र सत्य श्री साईं महराज जी जिनके सानिध्य आशीर्वाद के लिए करोड़ो लोग लालायित रहते है जाने क्या क्या जतन करते है कि महाराज का आशीर्वाद एव दर्शन प्राप्त हो जाये और कैसा उसका सौभगय है कि वह स्वंय आमन्त्रित कर रहे है ।

विकास को भी लगा कि चलो इसी तरह भारत के महान संत से कुछ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो जाएगा और वह महराज सत्य श्री साईं महराज से आध्यात्मिक एव धार्मिक संवाद करने लगा जिसे सुनकर सत्य श्री साईं जी महाराज प्रसन्न होते हुए मंद मंद मुस्कुराते बीच बीच मे कुछ प्रवचनात्म आशीष देते और पुनः विकास को सुनते इस प्रकार लगभग डेढ़ प्रहर का समय निकल गया ।

अंत मे जब विकास ने कहा महराज आप तो स्वंय दिव्य दैदिव्यमान देव स्वरूप व्यक्तित्व युग समाज के बीच मानव काया में है लोगो का विश्वास है कि आप साईं बाबा के द्वितीय अवतार है यह विश्वास आप द्वारा ही उनके मन मे आस्था के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है चाहे इसमें आपके चमत्कारो कि भूमिका हो या अवतारिय लेकिन सत्य यही है इतना सुनते ही सत्य श्री साईं बाबा बोले छोड़ो नौवजवान जन्म अवतार कि बाते कर्म पर बात एव ध्यान दो यही सत्य है ।

उन्होंने पूछा क्या नाम है?

विकास सत्य श्री साईं बाबा बोले नौवजवान मैं तुमसे बहुत प्रभावित हूँ और मैं बहुत प्रसन्न भी जिसके कारण तुम्हे हृदय से निच्छल निर्विकार बोध से आशीर्वाद दिया है मुझसे अपना सत्य नाम ना छुपाओ तब नौव जवान बोला महराज मैं नंदलाल हूँ वसुदेव पुत्र बहुत तेज हंसते हुए सर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद देते हुए अपने शिष्य के परिजनों के साथ मंदिर परिसर से बाहर निकले सत्य श्री साई महराज और अपनी कीमती काली कार में बैठे उनके पीछे दस बारह गाड़ियों का काफिला चल पड़ा।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।

211 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
सुंदर विचार
सुंदर विचार
Jogendar singh
ज़िन्दगी में जो ताक़त बनकर आते हैं
ज़िन्दगी में जो ताक़त बनकर आते हैं
Sonam Puneet Dubey
*दिल का दर्द*
*दिल का दर्द*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
छल.....
छल.....
sushil sarna
घनघोर इस अंधेरे में, वो उजाला कितना सफल होगा,
घनघोर इस अंधेरे में, वो उजाला कितना सफल होगा,
Sonam Pundir
जनवासा अब है कहाँ,अब है कहाँ बरात (कुंडलिया)
जनवासा अब है कहाँ,अब है कहाँ बरात (कुंडलिया)
Ravi Prakash
दामन जिंदगी का थामे
दामन जिंदगी का थामे
Chitra Bisht
बाल कविता: नदी
बाल कविता: नदी
Rajesh Kumar Arjun
शब की ख़ामोशी ने बयां कर दिया है बहुत,
शब की ख़ामोशी ने बयां कर दिया है बहुत,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
2824. *पूर्णिका*
2824. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल __
ग़ज़ल __ "है हकीकत देखने में , वो बहुत नादान है,"
Neelofar Khan
..
..
*प्रणय प्रभात*
दिल की बातें
दिल की बातें
Ritu Asooja
अधूरे उत्तर
अधूरे उत्तर
Shashi Mahajan
दिल से पूछो
दिल से पूछो
Surinder blackpen
जीवन सुंदर खेल है, प्रेम लिए तू खेल।
जीवन सुंदर खेल है, प्रेम लिए तू खेल।
आर.एस. 'प्रीतम'
जय मां शारदे
जय मां शारदे
Mukesh Kumar Sonkar
🍁🍁तेरे मेरे सन्देश- 5🍁🍁
🍁🍁तेरे मेरे सन्देश- 5🍁🍁
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
सच तो तस्वीर,
सच तो तस्वीर,
Neeraj Agarwal
नशीली आंखें
नशीली आंखें
Shekhar Chandra Mitra
एक झलक
एक झलक
Dr. Upasana Pandey
दिया ज्ञान का भंडार हमको,
दिया ज्ञान का भंडार हमको,
Ranjeet kumar patre
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
व्यक्ति को ह्रदय का अच्छा होना जरूरी है
व्यक्ति को ह्रदय का अच्छा होना जरूरी है
शेखर सिंह
क्रांतिकारी किसी देश के लिए वह उत्साहित स्तंभ रहे है जिनके ज
क्रांतिकारी किसी देश के लिए वह उत्साहित स्तंभ रहे है जिनके ज
Rj Anand Prajapati
अनोखा दौर
अनोखा दौर
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
गुरु की महिमा
गुरु की महिमा
Anamika Tiwari 'annpurna '
|नये शिल्प में रमेशराज की तेवरी
|नये शिल्प में रमेशराज की तेवरी
कवि रमेशराज
कुछ बातें बस बाते होती है
कुछ बातें बस बाते होती है
पूर्वार्थ
" जगह "
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...