Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 May 2020 · 5 min read

जन्म दिन का हार

एक शर्मा दम्पति बच्चों के साथ बैंगलोर शहर में रहते थे उनके परिवार में दो नन्हे-नन्हे फूल यानि दो पुत्र थे, एक की उम्र लगभग १२ साल और दूसरे बेटे की उम्र दो साल थी | दूसरे बच्चे के दूसरे साल के जन्म दिन को दम्पति ने किसी पांच सितारा होटल में प्रीतभोज का आयोजन किया था | सभी लोग समय से आ गये थे बड़ी ही धूम-धाम से जन्म-दिन का समारोह मनाया गया सभी खुश थे | सभी ने उत्तम प्रकार के बने भोज का आनन्द उठाया था लोग तारीफों के पुल बांध रहे थे लेकिन दम्पती धन्यवाद ही कह रहे थे | सभी बहार वालों के जाने के बाद परिवार वाले ही बच गए थे | जिसमे नन्हे बच्चे की बड़ी माँ थी और उनका परिवार सभी हंसी-ख़ुशी बहार निकल कर होटल के सामने अभिवादन करने लगे और महिलाएं एक-दूसरे के गले मिल अपने-अपने घर चले गए | घर पहुँच कर दम्पति ने अपने परोसी जो की उनके साथ ही थे बुलाकर चाय बनाकर पिलाई बड़ी बातें हुई जन्मदिन के बारे में लगभग रात के साढ़े दस या ग्यारह का समय हो रहा होगा सभी जन्मदिन में मिले बच्चे के उपहारों को एक एक कर खोल-खोल कर देख खुश हो रहे थे साथ यह याद कर रहे थे हमने किसके बच्चे के जन्म दिन में क्या दिया था और उसने हमारे बच्चे के जन्मदिन में क्या दिया है इस प्रकार की बातें होती रही और करीब ११ बजे सभी परोसी अपने घर चले गए | फिर मिसेज शर्मा (बच्चे की माँ) अपने कमरे में गयी तभी उनका ध्यान अपने सोने के हार पर गया जो उस समय उनके गले में नहीं था | अपने पति को बिना बताये वे इधर-उधर हार ढूंढने लगी किन्तु उनके हाथ कुछ भी ना लगा अंत में पति को बताना उचित समझा और बता दिया | पति भी हार के खो जाने को सुनकर अवाक् रह गये, तुरंत उठकर पत्नी के साथ पुरे घर में घर से निकल कर रास्ते में भी कुछ दूर ढूढ़कर परेशान हो वापस आ गए| सुबह-सुबह 5 बजे ही होटल जाने का फैसला लिया गया की हो सकता है कि, वही कही भीड़ में गिर गया हो | लेकिन दोनो पति-पत्नी एक दूसरे को समझा रहे थे कि चिंता ना करो जो होना था हो गया | लेकिन भगवान पर भरोसा है कि हमारा कुछ नुकसान नहीं होगा, हार जरूर मिल जायेगा | लेकिन दोनों के मन में था कि मिलना मुश्किल है क्योंकि आज के समय में १० रूपया भी किसी को मिलता है तो वापस नहीं देता कोई यह सोने का हार था जो काफी महगां था कौन आज के समय में वापस करता है | मन ही मन ड़रते–ड़रते दूसरे दिन दोनों पति-पत्नी होटल गये साथ में उनके पारिवारिक मित्र पाण्डेय जी भी साथ थे | होटल पहुँच कर हार के बारे में मैनेजर से बात की गई किन्तु सब बेकार था कोई हल नहीं निकला तभी शर्मा जी ने बड़े सहज ढंग से होटल और स्टाफ़ की तारीफ करते हुए कहा कि –“हम आप के ऊपर या आपके होटल स्टाफ पर कोई आरोप नहीं लगा रहे है हम तो बस इतना चाहते है की आप होटल में लगे सीसीटीवी की पुटेज दिखा दीजिये जिसमें से हमें यह पता चल जायेगा की हार होटल से जाने के समय तक गिरा या नहीं उसके बाद हम कुछ सोच सकते है, क्या करना है ?” शर्मा जी की बात सुनकर मैनेजर ने ठीक है आप इंतजार कीजिये होटल के मालिक १२ से ०१ बजे के बीच आएगें तो आप बात करना क्योंकि आफिस की चाभी मालिक के पास होती और सीसीटीवी का कंट्रोल उनके आफिस से ही है | मन में डर बना था कि न जाने क्या होगा हार मिलने की उम्मीद समय को देखते हुए जाती रही थी किन्तु न जाने मन के एक कोने से आवाज आती थी की चिंता मत करो आप का हार मिल जायेगा आखिर आप का नुकशान कैसे हूँ सकता है आप तो भगवान के अनन्य भक्त है और कभी भी सपने में भी किसी का न बुरा किया है और न बुरा सोचा है फिर आप के साथ बुरा हो ही नहीं सकता | इसी तरह के न जाने कितने बिचार मन में आते जा रहे थे | पाण्डेय जी भी सभी को मित्रता बस सांत्वना दिला रहे थे लेकिन उनके मन में भी यही विचार आ रहे थे कि हार का मिलना अब मुश्किल ही है | इस तरह सोच सभी रहे थे लेकिन बोल कोई भी नहीं रहा था और समय था कि कटने का नाम भी नहीं ले रहा था एक-एक पल कई घंटों के सामान लग रहा था | किसी तरह समय बीता और होटल के मालिक आ गये मैनेजर ने शर्मा जी को मालिक से मिलाया और मालिक शर्मा जी को अपने ऑफिस में ले गये और सीसीटीवी की पुटेज दिखाने लगे उसमे होटल से निकलने तक मिसेज शर्मा के गले में हार था यह देख कर शर्मा जी का मन बैठ गया क्योंकि यदि होटल में हार गिरा होता तो मिलने की संभावना भी थी लेकिन होटल के बाहर कहाँ गिरा कुछ पता न किसको मिलेगा कुछ ज्ञात नहीं | शर्मा जी होटल के मालिक को धन्यवाद करते हुए लगभग उठ खड़े हुए थे और मन ही मन भगवान को कह रहे थे की प्रभु मुझसे कहाँ भूल हो गई जो आज आप मेरा साथ नहीं दे रहे हेई मैने तो सदा ही आप का सहारा और ध्यान किया है आज यह आपके रहते क्या हो रहा है | तभी होटल मालिक की आवाज सुनाई पड़ी मिस्टर शर्मा जी बैठिये इतना कह कर मालिक ने होटल के मैनेजर को बुलाया और मुझसे बातें करने के लिए कहा मैनेजर ने एक बड़े बूड़े की तरह शर्मा जी को समझाने लगा कि इस तरह औरतों का होशो-हवाश खोकर चलना फिरना अच्छा नहीं की खुद का ध्यान न रहे की क्या पहना हैं और क्या नहीं इसका भी ज्ञान न रहे इतनी बाते सुनकर शर्मा जी का मन भर आया उन्हें लगाकि यदि यह सक्श इतना कह रहा है तो सम्भवत: इसको हार का पता है और अगले पल ही मैनेजर ने अपने पैंट की अगली पाकेट से चमकता हुआ सोने का हार निकाल कर होटल के मालिक की मेंज के ऊपर रख दिया | यह देखकर शर्मा जी की आँखों में आंसू आ गये क्योंकि यह उनकी बड़ी मेहनत की कमाई का पत्नी के लिए बनवाया गया हार था जो की एक-एक पैसे इकठ्ठा करके बनवाया था वह भी शादी के पहले क्योंकि उन्हें शौक था कि उनकी पत्नी को शादी के समय जाने वाले चढ़ावे(उपहार)में सोने का हार जरूर जाये | हार वापस देख कर शर्मा जी मैनेजर को एक हजार रुपये बक्सीस देने लगे लेकिन उसने लेने से इंकार कर दिया फिर वहीँ होटल के मालिक के ऑफिस में ही किनारे पर छोटा सा मंदिर बना था शर्मा जी मंदिर में एक हजार रूपये चढ़ाना चाह रहे थे तभी होटल मालिक ने उन्हें यह कहकर माना कर दिया की ऐ मेरे भगवान हैं मै इनकी सेवा करूंगा आप कृपया बाहर जाकर किसी और मंदिर में चढ़ा दें | शर्मा जी होटल मालिक और मैनेजर दोनों को धन्यवाद देते हुए ख़ुशी-ख़ुशी उनसे विदा ली बाहर मित्र पाण्डेय और मिसेस शर्मा इंतजार कर रहे थे मिसेस शर्मा अपना हार देख कर आँखों के आंसू नहीं रोक सकी तभी शर्माजी ने उन्हें समझाया और वापस घरले आये, भगवान को लड्डू चढ़ाया और मुहल्ले में बांटा साथ ही हजार रूपये एक गरीब औरत को उनके बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के लिए दे दिए और भगवान को हार वापस मिलने पर धन्यवाद कहा |

पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 368 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सारा रा रा
सारा रा रा
Sanjay ' शून्य'
*पानी व्यर्थ न गंवाओ*
*पानी व्यर्थ न गंवाओ*
Dushyant Kumar
जिन्दगी ....
जिन्दगी ....
sushil sarna
* बाल विवाह मुक्त भारत *
* बाल विवाह मुक्त भारत *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
" मैं कांटा हूँ, तूं है गुलाब सा "
Aarti sirsat
हरियाली के बीच में , माँ का पकड़े हाथ ।
हरियाली के बीच में , माँ का पकड़े हाथ ।
Mahendra Narayan
एक उम्र
एक उम्र
Rajeev Dutta
एकादशी
एकादशी
Shashi kala vyas
बुद्ध पूर्णिमा के पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
बुद्ध पूर्णिमा के पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
डा गजैसिह कर्दम
पल भर फासला है
पल भर फासला है
Ansh
"आदत"
Dr. Kishan tandon kranti
नमः शिवाय ।
नमः शिवाय ।
Anil Mishra Prahari
*ढोलक (बाल कविता)*
*ढोलक (बाल कविता)*
Ravi Prakash
💐प्रेम कौतुक-259💐
💐प्रेम कौतुक-259💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
भले ही तुम कड़वे नीम प्रिय
भले ही तुम कड़वे नीम प्रिय
Ram Krishan Rastogi
खुशियों का बीमा
खुशियों का बीमा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
शहर - दीपक नीलपदम्
शहर - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
हक़ीक़त ये अपनी जगह है
हक़ीक़त ये अपनी जगह है
Dr fauzia Naseem shad
"Always and Forever."
Manisha Manjari
52 बुद्धों का दिल
52 बुद्धों का दिल
Mr. Rajesh Lathwal Chirana
मरने से पहले / मुसाफ़िर बैठा
मरने से पहले / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
सोचता हूँ रोज लिखूँ कुछ नया,
सोचता हूँ रोज लिखूँ कुछ नया,
Dr. Man Mohan Krishna
आप अच्छे हो उससे ज्यादा,फर्क आप कितने सफल
आप अच्छे हो उससे ज्यादा,फर्क आप कितने सफल
पूर्वार्थ
बड़े इत्मीनान से सो रहे हो,
बड़े इत्मीनान से सो रहे हो,
Buddha Prakash
आप दिलकश जो है
आप दिलकश जो है
gurudeenverma198
" सब भाषा को प्यार करो "
DrLakshman Jha Parimal
बहकी बहकी बातें करना
बहकी बहकी बातें करना
Surinder blackpen
किताब
किताब
Lalit Singh thakur
मैं हूं न ....@
मैं हूं न ....@
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
■ इधर कुआं, उधर खाई।।
■ इधर कुआं, उधर खाई।।
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...