जन्माष्टमी
जन्माष्टमी
——————————— श्री कृष्ण का प्रसिद्ध कथन “यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत—-” कितना सटीक है;”जब जब धर्म की हानि होती है तब तब मैं जन्म लेता हूँऔर धर्म को पुनर्स्थापित करता हूँ।” ठीक यही श्री कृष्ण के जन्म के समय की स्थिति थी।उनके सगे मामा ने अपने पिता महाराज श्री अग्रसेन को कारागार में डाल कर स्वयं को मथुरा का राजा घोषित कर दिया। लोगों को यह आदेश दिया कि वेद और अन्य देवी देवता की पूजा न की जाये और कंस को ही भगवान के रूप में पूजा जाये।एक आकाशवाणी या यूँ कहें कि मन के अज्ञात भय से अवचेतन मन की आवाज से डर कर उसने उस बहन देवकी और बहनोई वासुदेव को कारावास में डाल दिया कि उससे उत्पन संतान उसका वध कर देगी।
इसका प्रभाव यह हुआ कि असुरी प्रवृतियां समाज में हावी हो गईं।असामाजिक तत्व जगह जगह तांडव मचाने लगे।कंस का संरक्षण उन्हें प्राप्त था।
उधर देवकी की सात संतानों को अपने अंजान भय के कारण उसने अपने हाथों से मार दिया। जो अपने बहन की नवजात संतानों को मार दे तो इससे अधिक रिसी मनुष्य में संवेदनहीनता नहीं हो सकती।जिस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ उस दिन भादों की मूसलाधार वर्षा में जैसे पूरी मथुरा बाढ़ग्रस्त थी।तारों और पानी ही पानी। प्रचलित कथा के विपरीत तथ्य यह है कि कंस ने स्वयं ही अपनी गर्भवती बहन को बरसाना भेज दिया होगा कि वहाँ प्रसव जो होगा जिससे वह आसानी से उसे मार सके।मथुरा कारागार में जलभराव के कारण ही देवकी को स्थानांतरित किया गया होगा।
न केवल मथुरा अपितु आसपास का क्षेत्र के लोग भी असामाजिक तत्वों से (असुरों) से परेशान थे कि उन्होंने दैवीय संयोग और नक्षत्रों में उत्पन श्री कृष्ण को न केवल छुपाया अपितु उसकी रहने की व्यवस्था भी ग्राम प्रधान के यहाँ की जिससे उसके गुणों को नैसर्गिक रूप से निखार लाया जा सके।और देवकी को एक नवजात भी दिया गया जो कि कृष्ण के स्थान पर कंस के सामने प्रस्तुत किया सके।जैसा कि सबलजानते हैं कि श्री कृष्ण ने अपने ग्वाल मित्रों के साथ मिल कर कंस का अंत किसा था।
वैसे तो भारतवर्ष में हर दिन ही त्यौहार होता है।किसी दिन एकादशी को किसी दिन पूर्णमासी और कभी अमावस्या।हर दिन का अपना ही महत्व है ।परंतु श्रावण(सावन) मास के आते ही जैसे त्यौहारों को पंख लग जाते हैं।पूरा सावन मास शिव जी को समर्पित होता है;कांवड़िये भारत में अपने राज्यों की पवित्र नदियों का जल संकल्प के साथ लेकर चलते हैं और अपने निकट के शिवालय में जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं।इसका समापन रक्षा बंधन से पूर्व त्रयोदषी को शिवरात्रि के साथ संपन्न होता है;दो दिन पश्चात् पूर्णमासी को रक्षाबंधन के दिन भाई बहन का प्रमुख त्यौहार आता है।
रक्षा बंधन के ठीक नौवें दिन पूरे भारत में ही नहीं विश्व के अधिकतम देशों में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है।यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है इसलिये इसे कृष्ण जन्माष्टमी भी कहते हैं।कृष्ण पक्ष में होने के कारण संभवत: श्री कृष्ण का नाम कृष्ण रखा गया हो।श्रावण और भाद्रपद मास में वर्षा की अधिकता होती है इसलिये प्रकृति के साथ पूरे भारतवर्ष में वृक्षों के संरक्षरण के लिये कुछ वर्षों पूर्व तक पूरे सावन भादों में में झूला झूलने की प्रथा थी।वृक्षों पर मोटा रस्सा डाल कर महिलायें बहुत ऊँचाई तक वे जाने की प्रतियोगिता करतीं।आपस में हँसी ठिठोली करते हुये कृष्ण भजन के एक रूप रसिया गातीं। इससे गांव में समरसता बढ़ती थी।आपस में सुख दुख बांट लेती थी। शहरों के विस्तार ने सारे घने पेड़ों के झुरमुट छीन लिये ।अब महिलायें जो रक्षाबंधन पर मायके में आई होती हैं;गांव की बचपन की सखियों से चुहलबाजी की बजाय चारदीवारी में क़ैद होकर रह गई हैं।
पूरे भारतवर्ष में जन्माष्टमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है।प्रत्येक मंदिर सजाया जाता है।बिजली की झालरें लगाई जाती हैं।श्री कृष्ण के जीवन से संबंधित झांकियां सजाई जाती हैं।सारा वातावरण कृष्णमय हो जाता है।छोटे बच्चे कृष्ण बन कर मोरपंख लगा कृष्ण जन्म को जैसे जीवंत कर देते हैं।मथुरा;वृंदावन में सारे विश्व से लोग अपने अराध्य के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने आते हैं। भक्ति के इस अथाह सागर में आप भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवायें।
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राजेश’ललित’