*जन्मभूमि के कब कहॉं, है बैकुंठ समान (कुछ दोहे)*
जन्मभूमि के कब कहॉं, है बैकुंठ समान (कुछ दोहे)
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1
जन्मभूमि के कब कहॉं, है बैकुंठ समान।
जन्मभूमि सबसे अधिक, बोले राम महान।।
2
सरयू सुखदायक नदी, बोले राम प्रणाम।
नगर अयोध्या के सभी, वासी हैं अभिराम।।
3
सीता देखो सेतु यह, निर्मित अद्भुत काम।
दर्शन करके जन इसे, लेंगे मेरा धाम।।
4
देखो यह रामेश्वरम, शिव का प्यारा धाम।
सीता जी से कह रहे, दिखा रहे श्री राम।।
5
कहा विभीषण ने प्रभो, रत्न-स्वर्ण भंडार।
लंका पर है आपका, पूर्ण रूप अधिकार।।
6
जीती लंका पर कहॉं, हुई राम को चाह।
निर्लोभी के मन कहॉं, धन के प्रति उत्साह।।
7
भेंट विभीषण ने किए, प्रभु को रत्न अपार।
प्रभु ने पर सब कर दिए, तृण-सम अस्वीकार।।
8
थी संपत्ति कुबेर की, पुष्पक श्रेष्ठ विमान।
श्रीराम ने कर दिया, वापस उन्हें प्रदान।।
9
थे कृतज्ञ श्री राम जी, करते थे गुणगान।
वानर सेना ने किया, अद्भुत कार्य महान।।
10
सीता जी का जल गया, नकली छाया-रूप।
बाहर आया अग्नि से, असली रूप अनूप।।
11
पर्दा कैसा पालकी, दी सीता ने छोड़।
मातु-रूप कपि के लिए, दिया मधुर यों मोड़।।
12
भरत प्रतीक्षारत मिले, नहीं सह्य अब देर।
चौदह वर्ष बहुत हुए, बैठे प्राण मुॅंडेर।।
13
हनुमत ने पहचान ली, भरत हृदय की पीर।
कहा राम से हैं भरत, मिलने बंधु अधीर।।
14
पकड़ो अपना राज्य अब, छोड़ूॅंगा सब भार।
भरत बंधु से कह उठे, लौटे यह आभार।।
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451