जन्मदाता
जन्मदाता
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याद तेरी जब आती है
मन व्याकुल सा होने लगता है,
विश्वास ही नहीं होता
तू इतनी जल्दी
हाथ छुड़ाकर
यूँ चली जायेगी,
जब मुझे तेरी सबसे अधिक जरूरत थी।
बीच मझधार में यूँ छोड़कर
तुम्हारा जाना रूलाता है,
कैसे सब्र करूँ ?
आखिर तू ही मेरी जन्मदाता है।
कैसे ढांढस बँधाऊं खुद से
आखिर तेरा मेरा
मां बेटे का नाता है।
अब तो कुछ भी समझ नहीं आता है।
■ सुधीर श्रीवास्तव