जन्नतों में सैर करने के आदी हैं हम,
जन्नतों में सैर करने के आदी हैं हम,
खिलते हुए बाग के माली हैं हम।
तमन्नाओ में सजा के रखा है गुलाब,
कैसे कहें प्रिय प्रेम के पुजारी हैं हम।।
तुम्हारी मुस्कराहट पर जिंदा परिंदे हैं हम,
अज़ल की कलम ने लिखा है ज़िंदा हैं हम।
तुम्हारी पड़ोस के मस्जिद के नमाजी हैं हम,
कैसे कहें प्रिय प्रेम के पुजारी हैं हम।।
चाहतो का ये बाज़ार चहलकदमी में है,
कैसे बताए तुम्हें कितनी गर्मी में हैं हम।
सूख न जाये प्रिये ये मेरे लहू का कतरा,
कैसे बतायें तुम्हें कितनी जल्दी में हैं हम।।
प्यार में तुम्हारे जान कितने जल्दी में हैं हम,
कैसे बतायें तुम्हें की दोस्त की हल्दी में हैं हम।
तुम्हारी मुस्कराहट पर जिंदा परिंदे हैं हम,
अज़ल की कलम ने लिखा है ज़िंदा हैं हम।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश