जनाब नशे में हैं
समझे भी ना समझे उनका क्या कीजिए
जनाब नशे में हैं दो घूंट और पिला दीजिए
दिन के उजाले में अंधियारा तलाश रहे है
दिखाई नहीं देता इक चश्मा पहना दीजिए
कितने मासूम कितने नासमझ हैं बेचारे
थमाकर अक्ल की किताब पढ़ा दीजिए
जरूर किसीने जनाब का दिल तोड़ा होगा
वैध को बुलाकर कुछ तो इलाज कीजिए
कलम कुछ कहती है लिखते कुछ और हैं
गहरी नींद सोए हैं कहीं जगा मत दीजिए
घर किसीका जला तो जश्न मना रहे थे
अब इनकी बारी है बस इन्तजार कीजिए
आईने में कभी अपना चेहरा भी देख लो
असलियत पता चलेगी फिर क्या कीजिए