जनाब।
यही अदा तो आपकी अक्सर,
कर देती है हैरान जनाब,
दूसरों को ऐतबार सिखाते मगर,
देखें ना अपना गिरेबान जनाब,
जानलेवा हुनर ये आपका,
है अंदाज़ बड़ा ही लाजवाब,
ख़ुद की कमियों को आखिर कैसे,
कर जाते नज़रअंदाज़ जनाब,
मिसाल-ए-ऐतबार कहते हैं ख़ुद को,
जैसे ईमान की मूरत हैं जनाब,
दूसरों से उम्मीद फरिश्तों सी मगर,
ख़ुद कैसे इंसान है जनाब,
क्या ख़ूब है दोहरापन आपका,
कि दूसरों को हैं आँकते जनाब,
मिले जो फुर्सत तो बताइएगा,
कभी अपने अंदर हैं झांकते जनाब,
दूसरों को आईना दिखाने में,
अक्सर रहते हैं मशगूल जनाब,
कभी वक्त मिले तो अपने भी,
साफ कीजिए चेहरे की धूल जनाब।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।