जनहित में अगर उसका, कुछ काम नहीं होता।
गज़ल
221/1222/221/1222
जनहित में अगर उसका, कुछ काम नहीं होता।
दुनियां की नज़र में वो, श्री राम नहीं होता।
बनता न सिकंदर तो, बदनाम नहीं होता,
ये हार न होती ये, अंजाम नहीं होता।
पारस को कहो कितना, बेकार का पत्थर है,
दुनियां की नज़र में वो, बेदाम नहीं होता।
गर प्यार मोहब्बत से, रहता ये जहां सारा,
सब जग में जो फैला है, संग्राम नहीं होता।
खुलते न जो मयखाने, मयख्वार नहीं होते,
महफ़िल में सुरा साकी, औ’र जाम नहीं होता।
धब्बे न लगे होते, दामन पे अगर उसके,
इज़्ज़त का खजाना भी, नीलाम नहीं होता।
गर प्यार नहीं होता, इंसान के जीवन में,
‘प्रेमी’ भी गुल ए गुलशन गुलफाम नहीं होता।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी