जनहरण घनाक्षरी
जनहरण घनाक्षरी
मनन चलत शुभ,
मनरम मधुमय,
अनुपम सतमय,
प्रिय हर वचना।
मधुर वचन प्रिय,
करकत कटु वच,
जिधर हृदय मधु,
उधर मचलना।
रुक रुक चलकर,
सहज कदम धर,
तपत जगत लख,
सुखद बरसना।
शुभद बनत चल,
कटत हृदय मल,
हितकर बनकर,
शिव जिमि दिखना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।