जनवादी कविता
बेच दिहलस देश ऊ!
धर साधु के भेस ऊ!!
अपना हर विरोधी पर
थोपले जाता केस ऊ!!
नाया भारत के सपना
भरभरा के टूट गईल!
जनता के छाती पर
मरलस एइसन ठेस ऊ!!
Shekhar Chandra Mitra
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