जनता दरबार
जनता दरबार लगने लगा है
बंद दरवाजा खुलने लगा है
ज्यों ही कोई दस्तक देता है
दर पर कोई प्रार्थी नजर आता है
हाथ जोड़े कोई उम्मीदवार नजर आता है।
जिनसे कोई उम्मीद पूरी नहीं हुई
पिछले पांच सालो में वे भी,
कुछ नए चेहरे भी दिखते हैं
जो उम्मीद लेकर आएं हैं
नई- आशा और नई उम्मीद दिखाते हैं।
हर दरवाजे पर यही दिखता है
“न कोई नाता, न कोई रिश्ता
लेकिन आप से पुराना रिश्ता है मेरा”
कहने में क्या लगाता है,
क्योंकि आप है जनता।
आप हैं राजा, आप ही हैं महाराजा
आप ही हैं : मेरे मालिक !
आप का आदेश सर – आंखों पर
जहां कहेंगे, वहां बैठ जाऊंगा
उठने कहेंगे, उठ जाऊंगा।
मैं इस दल का प्रत्याशी हूं
प्रत्याशा लेकर, बड़ी उम्मीद से
आपके दरबार में आया हूं
मुरादें पूरी कर दे मेरी आप
मेरे चुनाव चिन्ह पर बटन दबाना है।
पिछले बार मैं जीत नहीं पाया
इस बार तो जीत जाऊंगा
फिर मंत्री बनकर आऊंगा (सच -सच कहता हूं)
अल्प ही सही (नमक की तरह)
काया- कल्प कर दूंगा।
जनता दरबार लगने लगा है
बंद दरवाजा खुलने लगा है…
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स्वरचित और मौलिक
घनश्याम पोद्दार
मुंगेर