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23 Sep 2022 · 1 min read

जनता की दुर्गति

हम तो
बेमौत मारे गए
कातिल को
मसीहा समझकर!
कहीं के
ना रहे हम तो
रहजन को
रहनुमा समझकर!
इसे हमारी
बुजदिली या
जहालत ही
मान लीजिए कि!
चुपचाप
हमने कबूल किया
साजिश को
नसीबा समझकर!
#मज़दूर #किसान #मेहनतकश
#बहुजन #अवाम #public
#Political #poetry #इंकलाबी
#शायरी #दलित #आदिवासी #गरीब

Language: Hindi
159 Views
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