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8 Jan 2021 · 1 min read

जनक छंद (जल-संकट)

जनक छंद (जल-संकट)

सरिता दूषित हो रही,
व्यथा जीव की अनकही,
संकट की भारी घड़ी।
***

नीर-स्रोत कम हो रहे,
कैसे खेती ये सहे,
आज समस्या ये बड़ी।
***

तरसै सब प्राणी नमी,
पानी की भारी कमी,
मुँह बाये है अब खड़ी।
***

पर्यावरण उदास है,
वन का भारी ह्रास है,
भावी विपदा की झड़ी।
***

जल-संचय पर नीति नहिं,
इससे कुछ भी प्रीति नहिं,
सबको अपनी ही पड़ी।
***

चेते यदि हम अब नहीं,
ठौर हमें ना तब कहीं,
दुःखों की आगे कड़ी।
***

नहीं भरोसा अब करें,
जल-संरक्षण सब करें,
सरकारें सारी सड़ी।
***

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया

Language: Hindi
1 Like · 3 Comments · 415 Views

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