जद हमारा गगन से कभी कम नहीं।
हिन्दुस्तानी गजल
212 212 212 212
आंख उनकी कभी हो कहीं नम नहीं।
जिंदगी आपको दे कभी ग़म नहीं।
चांद बैठा बगल में अगर आपके।
जद हमारा गगन से कभी कम नहीं ।
जो मोहब्बत यहां मापनी में नपे
उस मोहब्बत के जद में कहीं हम नहीं।
आप तो ना मिले गम उकूबत मिला
आप गर हाल पूछो कहीं गम नहीं।
और आंसू नहीं अब दिखेगा कभी
ख़्वाब में आंख होती कभी नम नहीं।
शौक से लिख रहा हूं यहां दास्तां
आप “मैं” नज़्म में यार तुम हम नहीं।
आपके साथ में था मज़ा जिंदगी
आंख अंधी हुई है मगर नम नहीं ।
अब समझ आ गई बात दीपक कहा।
है खुशी जो उन्हें तो हमें गम नहीं।
©® दीपक झा रुद्रा
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