जटिल आज़ादी
सुबह लिखती हूँ,शाम लिखती हूँ।
इस चारदीवारी में बैठी
हर रात लिखती हूँ।
ये अल्फ़ाज नहीं
मेरे दिल के जज़्बात हैं,
जिन्हें तेरे नाम लिखती हूँ।
हर साँस में बोलती हूँ
हर धड़कन में कहती हूँ
तू जो आज तक ना समझा
वो शब्द रचती हूँ।
बड़ी मुश्किल है जुदाई
बड़ी कठिन है रिहाई
कैसे मिलेगी आज़ादी सोचती हूँ।
ये क़ैद है मेरे जीवन की
ये काली रात है आहों की
इन आहों को हर करवट में सहेजती हूँ
इन आँसुओं को पलकों में समेटती हूँ।
हर बार , हर रात सोचती हूँ
इस काली रात की
सुबह कभी तो होगी
सुबह कभी तो होगी ही….