जटाधारी शिव जी
बड़े भोले’-भाले, जटाधारी’ शिव जी
पियें विष के’ प्याले, जटाधारी’ शिव जी
सुकोमल सुमन सज्जनों के लिए हैं,
हैं दुष्टों को’ भाले, जटा धारी’ शिव जी
बड़ी ठंड कैलाश पर्वत पे’ लेकिन,
न ओढें दुशाले, जटा धारी’ शिव जी
अँधेरे हैं छाये हुए जिन्दगी में
करो अब उजाले, जटा धारी’ शिव जी
जटाओं में गंगा सजे चन्द्र मस्तक,
गले नाग डाले, जटाधारी शिव जी
खुला दर सभी के लिए है हमेशा,
न पट है, न ताले, जटाधारी शिव जी
नहीं देवता शिव के जैसे मिलेगें,
अरे मन तू’ गाले, जटाधारी शिव जी
शरण में तुम्हारी चले हम तो’ आये,
रखो बस सँभाले, जटाधारी शिव जी