जज्बा देश हित का
इसकी माटी से बना मै इसमें ही मिल जाऊंगा,
गुमनामी से निकलकर नाम कुछ कर जाऊंगा,
क्या कहते लोग इस बात से फर्क नहीं पड़ता कोई,
अपनों के लिए जीने वाला किसी से नहीं डरता कभी,
जीना दूसरे की खुशी के लिए इंसानियत का सार है,
बुरे समय में दूसरे की ढाल बनना अपना ही हथियार है,
कर्म करूंगा कुछ ऐसा सीमाएं नई फिर बना दूंगा,
मुश्किलों से डरता नहीं मै आग से भी खेल जाऊंगा,
समाज के इशारे पर क्यूं चलूं उनका मै मोहताज नहीं,
बना हूं मैं अपनी मेहनत से कोई उनका मै गुलाम नहीं,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक परचम नया फहरा दूंगा,
आंच आएगी जब माटी पर सीने से इसे मै लगा लूंगा,
जीऊंगा मै इसके लिए राहों में इसकी फूल मै बिछा दूंगा,
इसकी शान की खातिर मै जान की बाज़ी लगा दूंगा,
जनाजा उठा इसके लिए तो बेजिझक उठवा दूंगा,
सिपाही की तरह मरकर शहीदों में नाम मै करवा लूंगा।