जज़्बात-ए-इश्क़
अपने जज़्बात का इज़हार न कर पाए हम।
अश्क आँखों में था, तकरार न कर पाए हम।
मेरी हर याद में बस उनका ही चेहरा दिखता,
उफ़ बयाँ दर्द ये सरकार न कर पाए हम।
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️
अपने जज़्बात का इज़हार न कर पाए हम।
अश्क आँखों में था, तकरार न कर पाए हम।
मेरी हर याद में बस उनका ही चेहरा दिखता,
उफ़ बयाँ दर्द ये सरकार न कर पाए हम।
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️