जग सारा बाज़ार हुआ
बाहर के आडंबर हैं
मन का .सूना अंबर है
भावों का. तो मेला है
मानव .स्वयं अकेला है
भाव सलीका औजार हुए
जग सारा बाजार हुआ
सच्चे का मुंह काला था
मक्कारी का बोलबाला था
ग्लोबल जग हुआ वरदान
और पड़ोसी था अनजान
सावन भी बेजार हुआ
जग सारा बाजार हुआ
वार त्यौहार सभी रहे हैं
अपनापन और प्यार नहीं है
धन वैभव का अभिनंदन
अकिंचन पिछड़ों का क्रंदन
खुशबुओं का व्यापार हुआ
जग सारा बाजार हुआ
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित