प्रकाश से हम सब झिलमिल करते हैं।
चलो एक दीप मानवता का आज स्वयं के अंदर प्रज्वलित करते हैं।
यूं खुदके असुर को मार कर पुनः स्वयं को दोबारा से निर्मित करते हैं।।
दीन हीन निर्धन के हृदयों को दीवाली में चलकर प्रफुल्लित करते हैं।
गरीबों की बस्ती को मिलकर प्रकाश से हम सब झिलमिल करते हैं।।
जात पात की दीवार को प्रेम की शक्ति से तोड़ कर बराबर करते हैं।
मिटा कर अंधकार अपने ह्रदय मन का सारे संग हिलमिल रहते हैं।।
दीपावली के पावन महोत्सव पे हम सब मिलकर इक दूजे के गले लगते हैं।
इक मधुवन के पुष्प बनकर आओ हम सब जग में खिलकर महकते हैं।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ