#गीत//दोहरे क़िरदार
गंगा-सी बातें करते हैं ,
वो झरने-से इतराते हैं।
इक जुगनू लेकर आँखों में ,
सूरज से होड़ लगाते हैं।।
काग़ज़ की कश्ती पर बैठे ,
सागर पार करेंगे कैसे?
चार गुलाब उगाए घर में ,
गुलशन समझ लिया हो जैसे।
मुर्दा आँखों में सोच रहे ,
तारों के नभ चमकाते हैं।
मेंढ़क-सा हाल हुआ देखो ,
संसार कुआँ बतलाते हैं।।
जिस डाली पर बैठे हैं वो ,
उसको ही तो काट रहे हैं।
पत्थर की पूजा करते हैं ,
मानव को पर बाँट रहे हैं।
सत्ता पाने की खातिर वो ,
दंगे भी तो करवाते हैं।
घर जल जाते लाचारों के ,
पर उन्हें बंगले भाते हैं।।
ताजमहल की सुंदरता में ,
क्या अनुमान लगाया होगा?
इक रानी को ख़ुश करने में ,
कितना ख़ून बहाया होगा।
लोग कँगूरे देख रहे हैं ,
नींवों की ईंट भुलाते हैं।
देख उजालों के पीछे भी ,
लाख अँधेरे करहाते हैं।।
कुछ लोग नदी-से दौड़ रहे ,
कुछ जोड़ रहे कुछ तोड़ रहे।
सागर में मिल जाने पर वो ,
अपनापन भी हैं छोड़ रहे।
देश बदलते भेष बदलते ,
रूहे-सार बदल जाते हैं।
मिट्टी से मिट्टी के देखो ,
हर व्यवहार बदल जाते हैं।।
सोच बड़ी हो चाल नयी हो ,
चेतन मन का संस्कार रहे।
फूल झड़ें सूरत सीरत से ,
जग भार रहे ना हार रहे।
संतोषी तो खिल जाते हैं ,
कंजूस सदा हिल जाते हैं।
कमल निहारो जाकर प्रीतम ,
कीचड़ मिले मुस्क़राते हैं।।
#आर.एस.प्रीतम