जग के का उद्धार होई
✍️ भोजपुरी कविता ✍️
शीर्षक : “जग के का उद्धार होई”
ना धरती बदलल ना आकाश बदलल,
ना चांद सूरज के प्रकाश बदलल,
बयार जवन के तवने रहि गइल,
लेकिन मनई के बा विश्वास बदलल।।
संतान माई – बाप के पांव पखारत रहे,
दिल के आइना में चेहरा निहारत रहे,
देवता समझिके उनहीं पर वारत रहे,
एही भगवान के ऊ आरती उतारत रहे।।
भाई त भाई ह गैरो के भाई समझे,
हर औरत के ऊ देवी माई समझे,
ना खुद ना दूसरे के कसाई समझे।
अपने त दूसरे के दवाई समझे।।
ऊहे त मनई के अवतार रहल,
पहिले खानदान के सुन्दर संस्कार रहल,
हर सूरत के पावन विचार रहल।
ना भाई के भाई पर कबो वार रहल।।
अब केहू खुश नइखे पूजा के थाली से,
सभे परेशान बा एही बदहाली से,
समाज बेरोजगार हो गइल दलाली से।
दम घुंट रहल बा सबके ए अकाली से।।
दुनियां के हर दिल आज कपटी बा,
लूट – पाट चारों ओर छीना – झपटी बा,
दबंगन के राज में नाही कानून के सख्ती बा।
हर मोड़ पर बेईमानी के चलल भक्ति बा।।
घोर कलियुग में अब कइसे बेड़ापार होई,
मल्लाह दरिया कइसे खेके पार होई,
चारों ओर कुविचार के कांट बा भरल।
“रागी” भला जग के का उद्धार होई।।
🙏 कवि 🙏
राधेश्याम “रागी” जी
कुशीनगर उत्तर प्रदेश
संपर्क मार्ग : ९४५०९८४९४१