जगह
समेट बटोर चले जाने पर
शेष रह जाता है वह जगह
जो हल्का होना नहीं चाहता
दब जाना चाहता है दुबारा
नित दिन सोचता रहता बीते स्नेह
तलाशता रहता चले गए चीजों को
सत्यता को भली भांति जानते हुए
की ठहरता नहीं कोई एक जगह
समेटते वक्त भी नहीं
ले जा सका गया
उसपे पड़े निशानों को,
दरकते दरारों को
किसी के आने पर भी,
कोई नहीं भाता
न ही जाती निशाने,
जिसे चले जाना था
इन्हे हटाते हटाते,
बदल जाना पड़ता है
प्रयासों के बावजूद,
खुद को रोके रखा है
जाते हुए लोगों को देख
बस वो निहारता है
मंद मंद मुस्कुराता है
और स्थिर हो जाता है