जगमगाते तारे
जगमगाते तारे
——————-
सांझ होते ही सुनहले,
जगमगाते आसमां में तारे,
अनगिनत बिछे हुए सारे,
जैसे! आसमां में असंख्य पुष्प खिले?
बन गई जिंदगी फूलों की बगिया मेरी!
ऐसा! लगता आसमां में थाल सजा फूलों का!
चांद ऐसे चमके?
जैसे धरा नहा ली हो रोशनी में।
गुलिस्तां सजा के महका दी जिंदगी मेरी!
चांद और तारे मिलकर,
धरा को प्रज्वलित करते!
यामिनी अंधकार को चीरती हुई,
सुबह का इंतजार है करती?
जगमगाते आसमां के तारे ही
किस्मत मेरी!
इन तारों में ही अपनों को ढूंढ़ती में,
कौन सा तारा है मेरा अपना?
खुद से यूं ही बात करती हूं मैं ।
रोशनी सारे जहां में हो तेरी,
यही दुआ है मेरी!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर