जगत का हिस्सा
हम जो बोयेगे,
वही तो काटेगे,
जो बोलेगे,
वही सुनेगे,
हम ,जानते हैं कि,
जो ,चाहते हैं,
वो ही पाते हैं,
फिर भी ,
वो हम ही है,
जो,औरो की ,
खुशी में,
उनके सुख में,
न खुश होते हैं,
न उसे पचा पाते हैं।
तब ,हम ,
खुद को ,
इस ,जगत का ,
हिस्सा, कैसे,
कह पाते है।