जख्म सीने में है
******* जख्म सीने में है *****
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जो दिए थे जख्म वो सीने में है,
फिर भी यारो मज़ा जीने में है।
राहें प्रेम की बहुत है कठिन हुई,
तन और मन लथपथ पसीने में है।
चुलबली सी उठी रहती है मन में,
भला ऐसी क्या बात नगीने में है।
उठ रहा है धुआँ ये किस छोर से,
शान्ति दिखती नहीं मदीने में है।
नशा दारू में हो तो बोतल नाचती,
शराब का तो मजा बस पीने में है।
मनसीरत का सीना गमों से भरा,
सुख मिलता नहीं कभी छीने में है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)