जख्म दिल का भला कैसे छिपाया होगा
जख्म दिल का भला कैसे छिपाया होगा
उभरकर सामने ही दर्द जब आया होगा
दास्तां बेवफ़ाई की सुन उस सितमगर की
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
लट उलझी सी चेहरे पर जब बिखरी होगी
किस कदर दिवानों का दिल जलाया होगा
नज़र आपकी तरफ भी तो उठी ही होगी
जब किसी क़ातिल का नाम आया होगा
जी न सकेंगे सनम तेरे बिन पल भर भी
न पूछो के मैने ये रैन कैसे बिताया होगा
याद नहीं है मुफ़लिसी किसी को भी मेरी
बड़ी मुश्किल से ये मंजिल को पाया होगा
मिलती रही है सजा कँवल को किस जुर्म की
दिल किसी का तो उसने नहीं दुखाया होगा