*जख्मी मुस्कुराहटें*
जख्मी मुस्कुराहटें
बड़ी प्यारी लगती है यह जिंदगी हमारी
दिला जाती है कई जख्म न्यारी।
हर कदम पर जिंदगी की एक जंग है।
हर किसी के पास कई जख्म संग है।
गहरे होते हैं जख्म जब देने वाला ही
हो कोई अपना।
नैनों में हो जब मृग मरीचिका
जैसा कोई सपना।
जख्मों का समुंदर बड़ा गहरा होता है।
नाव पर बैठकर क्यूं
कोई तैरता रहता है।
जख्म होते हैं हजार
हर किसी के सीने में,
जो मिलते हैं कई बार
ज्यादा उम्मीद लगाने से।
नजर अंदाज करके जख्मों को
सब सिये जाते हैं।
हर एक जख्म को मुस्कुरा
कर छुपाए जाते हैं।
पारखी नजर से जख्म होता बेनकाब,
दर्द भरी मुस्कुराहटों को समझ लेते
वो जनाब।
जख्म राज बनकर के दिलों में
कैद होते हैं।
गिन ना पाए कोई इसे,
सबके पास बे हिसाब होते हैं।
अगर मुस्कुरा कर जिएंगे हम
तो ज़ख़्म हो जाएंगे सारे कम।
जख्मों का इतिहास
सीने में दबाए रखना।
चेहरे पर अपने,
सदा मुस्कुराहट बनाए रखना।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
(मंजू लता मेरसा)
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)