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12 Jun 2016 · 1 min read

जख़्म जब भी जिगर का हरा हो गया

जख़्म जब भी जिगर का हरा हो गया
दर्द हद से बढ़ा और दवा हो गया

दिल मचलने लगा है सरे शाम से
क्या बताएं तुम्हें दिल को क्या हो गया

तुमको देखे बिना चैन आता नहीं
ज़िन्दगी का अजब फलसफा हो गया

ख़्वाब कोई सुनहरा सजा आँख में
सुबह होने तलक आसरा हो गया

आदमी में कहाँ आदमीयत रही
देखिये वो तो कब का ख़ुदा हो गया

बात अच्छे दिनो की चली तो सही
हमको सुन के ही यारो नशा हो गया

होश आया हमें कल तो देखेंगे हम
क्या बुरा हो गया क्या भला हो गया

राकेश दुबे “गुलशन”
12/06/2016
बरेली

321 Views
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