जकड़ा भारत
जंजीरों में जकड़ा भारत
आंसू अविरल बहाता है,
मुक्त हुआ गोरों से तो
अपनो से कुचला जाता है।१
खण्ड खण्ड विघटित हो
जाति- धर्म-समुदायों में,
खो रहा गरिमा को अपनी
झूठे आलाप प्रलापों में।२
अरि को भी जिसने अपने
घर में इतना सम्मान दिया,
अपने सहोदर के संग क्यूँ
सौतेले सा व्यवहार किया?३
साक्ष है इतिहास इसका
गंगा यमुना की धारा भी,
मस्तक है उतुंग हिमालय
कावेरी कोशी सी नदियाँ भी।४
लाखों ने जो खून बहाया
क्यों व्यर्थ हुई वो कुर्बानी,
उमर हो गई सतर की तो
सतरह सी क्यूँ हो नादानी?५
जाति भेद की हिंसा में
घर का आगंन जल रहा,
लपटों में इसकी रे,हाय
गद्दारों का दिल मचल रहा।६
टुकड़े कर खाने देश को
गिद्ध से ये भटक रहे,
अरमान न होगा पूरा इनका
हों एकजुट हम डटे रहें।७
अपना भारत प्यारा भारत
अपने सपनों की ये भूमि,
पुज्य हर कदम है हरदम
करते करबद्ध हम स्तुति।८
गणतंत्र,स्वतंत्र दिवस को
क्योंकर हम त्यौहार मनाएँ,
सच्ची आजादी हासिल कर
अपना अभिमान इन्हें बनाएँ।९
सरिता खोवाला अग्रवाल