जंग
मैं जादूगरी नहीं दिखाता
हाथों को पैरों तक पहुँचा कर
मैं जी तोड़ मेहनत करता हूँ
काम करते-करते मेरे हाथ
ख़ुद ढ़ल जाते हैं पैरों तक
जिसका स्कल्पचर बना देती है लिने किल्डे
और बटोर लेती है ज़माने की सुर्ख़ियाँ
मैं सुर्ख़ियाँ बटोरने के लिए नहीं लिखता
मैं कुछ बदलने के लिए लिख रहा हूँ
मैंने बहुत सालों तक देखी है भूख
मैंने जंग लड़ी है रोटियों की
हमने फ़र्ज़ निभाया है बहुत दिन तक
सामंतवादी बेड़ियों को फैलाने का
तुमको कभी नहीं दिखते क्या
शहरों के हर चौराहे पर
ट्रैफिक के रुकते ही ज़िन्दा साये
चेहरे मोहरे में जो तुम जैसे होते हैं
मैले जिस्म में हालात सजाए रहते हैं
हाथों को कश्कोल बनाये रहते हैं
आज भी रोटी की जंग लड़ते है।
Abul Hashim Khan
October 31, 2021
3:00PM