जंगल मे मतदान
शहर की बदलती आबोहवा, जब जा पहुँची जंगल मे।
देख भविष्य होता सफल, कई जीव उतर गए दंगल में।।
गैंडे ने ले लिया था ज़िम्मा, मतदान सफल कराने की।
और मगर ने खोला दफ्तर, बैलेट पोस्टर छपवाने की।।
मीडिया में कोयल और कौए, खूब बेजोड़ प्रचार किये।
हांथी बाबू बने डी एस पी, मतदान ब्यवस्था साकार किये।।
उमीदवारों ने भर लिए फ़ॉरम, शेर प्रमुख दावेदार रहा।
साथ मे लोमड़ी और स्यार के, दावों का भरमार रहा।।
निर्दलीय गधा खड़ा हुआ, मेहनतकश में जो था अव्वल।
एक शहरी कुत्ता भी आ कर, था हुआ चुनाव में शामिल।।
खड़ा अचंभित जन जीवन कैसे, ये दुविधा आन पड़ी।
सत्ता किसकी होगी प्रश्न पर, है जनता की कान खड़ी।।
परिणाम अभी बाकी है मेरे दोस्त……
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०७/०३/२०२२)