जंगल की सैर
हम सब मिलकर फिर चले, करने जंगल सैर।
पंछी कलरव कर रहे, बतख रही है तैर।।
देखी हम सबने नई, भारत की तस्वीर।
पशु पक्षी जंगल सड़क, देखा बहता नीर।।
आम नीम बरगद लगे, गहरी देते छांव।
आओ जन्नत छू चले, नंगे नंगे पांव।।
कोमल कोमल घास है, लगती सुंदर सेज।
आओ बैठे हम सभी, करो नहीं परहेज।।
हम भी बच्चें बन गए, होकर बच्चों संग।
बच्चों को खुश देखकर, मन में भरी उमंग।।
झूले पर यूं झूलकर , बचपन आया याद।
बड़े संग बच्चें करें, खूब खुशी के नाद।।
लहरों पर जब हम चले, होकर नाव सवार।
देख दृश्य मन में हुई, देखो खुशी अपार।।
सूर्य अस्त होने लगा, सभी चले घर ओर।
मस्ती उमंग से भरी, रही आज की भोर।।
जब मिल जाए कुछ दिवस, करने को आराम।
मन दुगुने उत्साह से, फिर करता है काम।।
—— जे पी लववंशी हरदा मध्यप्रदेश