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10 Jul 2021 · 1 min read

छोड़ो नफरत और अदावट….

छोड़ो नफरत और अदावट।
हर चेहरे पर दिपे खिलावट।

रची विधना ने रचना अद्भुत,
सहज बनावट सघन बुनावट।

परख न पाएँ अपना-पराया,
बातों में यूँ मिले न मिलावट।

मुख पर सबके चढ़ा मुखौटा,
मीठी बानी में गरल घुलावट।

सज्जनता की पूछ न कोई,
भाए सबको सिर्फ सजावट।

जीवन जटिल हुआ है इतना,
सहज प्रवाह में आई रुकावट।

नियामत खुदा की पायी उसने,
वाणी से जिसकी झरे हलावट।

छाप न छोड़ें मन पर कोई,
चलती खबरें, फौरी-फटाफट।

सृजन की दो मुख्य कसौटी,
भाव-संगुफन शिल्प-कसावट।

हुआ आज रोबोट-सा मानव,
नैतिक मूल्यों में आई गिरावट।

रही न दुनिया जीने लायक,
होती देख सब ऊब-झिलावट।

घाम विकट है छाँह माँगे मन,
ढूँढे से मिले न कोई महावट।

लेखन तभी सफल हो ‘सीमा’
मर्म छुए जब, सहज लिखावट।

-© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
“चाहत चकोर की” से

4 Likes · 4 Comments · 549 Views
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