छोड़ भी दो अब राग कोरोना!
छोड़ भी दो अब राग कोरोना! उससे डर कर भयभीत होना!
उठो चलो कुछ पुरुषार्थ करो ना,क्या दिनभर बैठे,रात को सोना!
दीन-दुखियों का साथ भी दो ना,उनकी भूख,प्यास का काम करो ना! छोड़ भी दो अब राग कोरोना!
डर कर हम बैठे घर पर,हैंभटक रहे वह दर-दर!
मिल रहा नहीं भोजन पेट भर,चल रहे हैं वह रात और दिन भर!
घर जाने को पैदल चल कर ,उसे तो नही डरा रहा कोरोना !
छोड़ भी दो अब राग कोरोना!
निकले हैं वह अपने गाँवों को,छोड़ कर चकाचौंध से भरे शहर को, धन दौलत है जहाँ भरपूर,पर प्यार मोहब्बत नही दूर दूर!
कितने दिनों तक वह ऐसे रह लेते,कब तक भूख-प्यास सह लेते!
डरा गया उन्हें भूख में होना, चलो उठो कुछ तुम भी करो ना
छोड़ भी दो अब राग कोरोना!
टूटा सब्र का भरोसा और विश्वास,दिखी नही जब कोई आस!
होकर तब वह हताश, निकल पड़ा वह होकर निराश!
महिला के सिर पर गठरी,बाप के कन्धे पर बच्चे!
विरान सड़कों पर वह निकले,बन्धे हुए थे सिर पर गमछे!
कभी पगडंडीयोंं को राह बनाते,कभी रेल की पटरी पर वह जाते
झुंड के झुंड में वह राह तलाशते,उनकी परेशानी को तो देखो ना!
छोड़ भी दो अब राग कोरोना!
घर पहुँचने को होकर आतुर,भूख प्यास से हुए वह ब्याकूल!
पशीने से तर बतर पैरों के छाले बिसार बढते जा रहे कदम,दर कदम!
अपने भाग्य को कोष रहे थे, बच्चों के लिए भी की सोच रहे थे !
थोड़ा उनके लिए हम भी सोच लें,उनकी मुश्किलों को हल कर दें!
ना भी हम घर से बाहर निकलें,कुछ दान पुण्य का काम ही कर दें! सेवा को हैं जो लोग समर्पित,उन्हें ही कुछ सामग्री दे दें!
कुछ तो काम तुम भी कर दो ना, ठीक नहीं है अपनो तक सिमटना!अपने ही ऐश आराम में रहना! एक दूसरे पर दोष को मढना! आओ मिलकर कुछ काम करो ना,
छोड़ भी दो अब राग कोरोना!
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