छोड़ दूंगी तुम्हें भी
छोड़ दूंगी तुम्हें भी
जरा सांसों का साथ तो छूटने दो
वो इक गली है जो मेरे दिल के अंदर
बिखरा है जहां तेरे यादों का समंदर
हर एक बूंद यादों का दर्द की सोहबत में सूखने तो दो
नभ में फैले हैं देखो तो कितने तारे
कुछ कम कुछ ज्यादा उजियारे
कुछ पंक्तियों में सजे खड़े हुए है
कुछ पुतलियों पे ऑंजे हो जैसे स्वपन तिहारे
इन स्वपनो को टूट कर बिखरने तो दो
ऐ रात के मुसाफिर मुझको पहले मरने तो दो
~ सिद्धार्थ