छोड़ जाऊंगी
छोड़ जाऊंगी
हम रहेंगे नहीं ये मालूम है हमें,
मगर मैं कुछ तो छोड़ जाऊंगी
करेंगे याद कोई हमको कभी।
बस वही निशान छोड़ जाऊंगी।
बड़े-बड़े से महल दिखे हैं यहां
रोते हुए अपनी ही बदहाली पर।
लगी नजर न जाने किसकी रही
उनके ऐश्वर्य औ खुशहाली पर।
नहीं दौलत, नहीं कुछ और यहां
थोड़ी सी दास्तां जोड़ जाऊंगी।
कुछ किताबों के चन्द पन्नों पर
मैं चमकते हुए शब्दों में रहूंगी।
एहसास करा सकूं मैं कुछ को
अपनी यही कोशिश करूंगी।
करेंगे याद कोई हमको कभी।
बस वही निशान छोड़ जाऊंगी।
जहां डर डर के लोग रहते हों,
नहीं आना हमें यहां दुबारा है।
यहां तो शर्मिन्दा होता राक्षस
और कर्मों पे शैतान भी हारा है।
बदल दे दुनिया की तस्वीर यही,
कोई रास्ता तो जोड़ जाऊंगी।।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली