छोड़ आलस
छोड़ आलस प्रभु का तू गुणगान कर
राम जी ही लगाएँ तुझे पार रे
क्या रखा है जगत में प्रभु के सिवा
बोल वैकुंठ है जग का आधार रे
पाप का अंत करने वो ललकारते
बाण की नोक पर राम जग तारते
घोर वनवास को जब सिया चल पड़ी
देख कर ये व्यथा शाम ख़ुद हारते
राम की हार तो सब की ही हार रे
बोल वैकुंठ है जग का आधार रे …..
अपनी संतान के सुख से वंचित रहे
राम का दुख समझ में न आया किसे
राम की इस व्यथा से परे जग रहा
तू ने तो उम्र भर देख, पाया किसे
खोल दिल के सकल झूठे सब द्वार रे
बोल वैकुंठ है जग का आधार रे…..