छोटी सी है मेरी इच्छा
छोटी सी है मेरी इच्छा
छोटी सी है मेरी इच्छा, नेता मैं बन जाऊं ,
भ्रष्ट लोगों को जेल में भरकर, सजा उन्हे मैं दिलाऊं ।
कानून तोड़ने वालों को मैं ,अच्छा सबक सिखलाऊ,
वंशवाद की राजनीति को मैं, जड़ से आज मिटाऊ ।।
छोटी सी है मेरी इच्छा
दूसरी इच्छा मेरी कि मैं, अध्यापक बन जाऊं,
प्यार प्रेम का पाठ पढ़ा कर, बंधुत्व सिखलाऊ ।
पढ़ लिखकर बने महान मैं, ऐसा पाठ पढ़ाऊ,
धर्म जाति का भेद मिटाकर, ऐसी सीख सिखाऊं।।
छोटी सी है मेरी इच्छा
तीसरी इच्छा मेरी कि मैं , डॉक्टर मैं बन जाऊं ,
अपने हाथों से सब लोगों का, जीवन रोज बचाऊँ।
दर्द और दूरियां मन मे रहे ना , नस्तर ऐसा लगाऊँ ,
प्यार की गोली बनकर सब की, धड़कन में बस जाऊँ ।।
छोटी सी मेरी इच्छा
चौथी इच्छा मेरी कि, मैं बच्चा बन जाऊं
लोरियां सुनकर मात -पिता की, उनका साथ में पाऊँ ।
कपट झूठ और नफरत का मैं, रिश्ता ना कोई निभाऊँ,
गुड्डा- गुडिया का खेल खेल कर ,सबका मन बहलाऊँ ।।
छोटी सी मेरी इच्छा
पांचवी इच्छा मेरी कि मैं, सैनिक एक बन जाऊं ,
देश का पहरेदार मैं बनकर , सब की जान बचाऊँ।
जब झांके दुश्मन देश में, छक्के मैं उसके छुड़ाऊं,
भारतवर्ष की आन की खातिर, कफन तिरंगा बनाऊं ।।
छोटी सी मेरी इच्छा
छठवीं इच्छा मेरी कि मैं,खेतिहर बन जाऊं।
देश में मेरे कमी न हो मैं,धन-धान्य इतना उगाऊँ ।
हर व्यक्ति को खाना मिले ,भूखा ना किसी को सुलाऊँ,
गाय ,भैस को साथ में रखकर, दूध दही मैं खिलाऊँ ।।
छोटी सी मेरी इच्छा
सातवीं इच्छा मेरी कि मैं ,कवि आज बन जाऊं,
अपनी लेखनी की ताकत से, झूठ का पर्दा हटाऊँ ।
शेर की खाल में छुपे भेड़िए,सबके सामने लाऊँ ,
आईना बनकर सच का सबको, सूरत मैं दिखलाऊँ।।
छोटी सी मेरी इच्छा
आठवीं इच्छा मेरी कि मैं ,कलाकार बन जाऊं ,
अपनी कला से दीन- दुखी की ,पीडा सब को दिखाऊ ।
हार चुके जो मन से अपनी,जीत उन्हें मैं दिलाऊं
रंगमंच के माध्यम से, उनको में ऊंचा उठाऊं ।।
छोटी सी मेरी इच्छा
आखिरी इच्छा मेरी कि मैं , पंछी एक बन जाऊं
सबके दुख हर के मैं एक दिन,दूर गगन में जाऊं ।
कोयल सा मीठा बोलूं मैं, मधुर गीत मैं गाऊं,
जीवन के सब खेल खेलकर,एक दिन में उड़ जाऊं ।।
छोटी सी मेरी इच्छा
रचनाकार : अरविंद भारद्वाज