छोटी – छोटी बातें
छोटी – छोटी बातों के अर्थ भी
बहुत गहरे होते हैं ,
कुछ ऐसे जटिल प्रश्न प्रस्तुत करते हैं ,
जो सामान्य समझ से परे होते हैं ,
शब्दों का भ्रम- जाल व्यक्तिगत सोच को
उलझा कर रख देता है ,
द्वि अर्थी संवाद भी किसी निष्कर्ष पर
पहुँचने नही देता है ,
विचार मंथन में अनुमान एवं सत्याधार की खोज में
निरंतर संघर्ष जारी रहता है ,
एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव समाधान तक पहुँचने की दशा को दिग्भ्रमित करता है ,
वाक्-पटुता एवं छद्म से सत्यता को
विरल किया जाता है ,
विरोधाभास को हर संभव प्रयास से
प्रकट किया जता है ,
प्रज्ञाशील आकलन की कमी सर्वदा
इन बातों में पायी जाती है ,
जो सामान्य रूप से इन्हे जटिल एवं
दुरूह बनाती रहती है।