“ छोटी -छोटी गलतियाँ दोस्ती की दीवार हिला देती है “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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बहुत कम ही लोग हैं इन फेसबूक के पन्नों पे जो कभी आपस में मिल पाए ! दूर के लोगों दीदार होना तो स्वप्न है अपने करीब के रहने वालों की भी हसरत शायद ही पूरी हो पाती होगी ! एक गाँव और एक शहर के लोगों को यदा- कदा सौभाग्य मिल जाता होगा पर व्यस्त शहरों ,अन्य राज्यों ,विभिन्य देशों और विदेशों के मित्रों को बिरले ही मौका मिलता होगा ! बस उनकी तस्वीरों से ही काम चलनी पड़ती है ! उनकी लेखनी ,उनके विचार ,उनकी कविताएं ,लेख और विश्लेषण पढ़ पढ़ कर तृप्त होते रहते हैं !
बात यह भी नहीं कि फेसबुक के रंगमंच पर सारे कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते हैं ! कुछ नेपथ्य में ही छुप -छुप के अपना समय बिताते हैं ! उन्हें ना तलिओं की अपेक्षा होती है ,ना प्रशंसाओं की ! अंग तो फेसबुक के हैं पर ये निरंतर दर्शक बने रह जाते हैं ! इनकी यह भूमिका सुरक्षित क्षेत्र तक ही सीमित रहती है ! विवाद इनके करीब फटकती तक नहीं है !
सजग ,संवेदनशील ,लेखक ,साहित्यकार ,समालोचक ,कवि कथाकार और राजनीतिज्ञ समालोचक की भूमिकाओं का आँकलन ,समीक्षा ,आलोचना ,प्रशंसा और उनकी भूमिकाओं की टिप्पणियाँ होनी स्वाभाविक है ! आलोचना और प्रशंसाओं की एक मर्यादा होती है ! शालीनता और माधुर्यता के परिसीमाओं में रहकर यदि हम अपनी बात कहते हैं तो सबों को कर्णप्रिय लगता है !
कभी- कभी हम अच्छी बातें कहते -कहते कुछ गलती लिख देते हैं ! किसी ने किसी की प्रशंसा की और कमेन्ट बॉक्स में लिख डाला “ बहुत सड़ी बात…… क्या खूब कहा आपने “ ! यहाँ “ सही “ के जगह में उन्होंने “ सड़ी “ लिख दिया ! कभी- कभी किन्हीं की बातें शिष्टाचार की परिधियों से हटकर रहती हैं ! बस विभेद की ज्वालाओं में हम इस तरह झुलसते चले जाते हैं कि हमारी दोस्ती की दीवारें हिलने लगती हैं और हम विखर जाते हैं !
हमें लिखना है , टीका -टिप्पणी ,आलोचना ,समीक्षा और खमिओं को उजागर करना है पर पहली बात आदर ,सम्मान ,सम्बोधन ,शुद्धता ,आभार अभिनंदन ,प्यार और से अपनी बातें कहें तो हमारी मित्रता की दीवारें शायद ही कभी ढह पायेंगी !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत