छोटी कविता
१.
प्रेम
सावन का
पहला
मेघ है , जो
बिना गरजे भी
बरस जाता है
… सिद्धार्थ
२.
मैं सारी रात बैठ के
कगज से नाव बनाती रही
दर्द के गंगोत्री में उतारती रही
डूब जाता पार न पाता था वो
दर्द मेरे घाट, ख़ुशियाँ उस घाट
मेले बस लगाती रही
कागज का नाव गल-गल कर
धारा में समाती रही…
…सिद्धार्थ