”छोटा सा है गांव मेरा”
कविता -05
छोटा सा है गांव मेरा
जहां बीता है बचपन मेरा
अब मैं वहां रहता नहीं पर
वहीं लगता है दिल मेरा।।
वो जो पगडंडियां थीं जिनपर
बचपन में चलते थे हम कभी
सड़कें बिछ गई है बड़ी-बड़ी
अब तो उन रास्तों पर सभी।।
वो जो आम के पेड़ों में झूला झूलते
भरी दोपहरी छांव में खेलते थे हम।
ना जाने कब वो कहां हो गए हैं गुम।।
गाय जो पहले जाती थी
चरागाहों में हरी घास चरने
आज़ादी उसकी भी छिन गई है
वो भी अब खूंटे से बंध गई है।।
फसलों के बीच में जमीन आसमान
की दूरी को रोज निहारा कर जीता
अब खेतों में रोज नहीं जा पाता
सुन्दर अपने गांव को देख नहीं पाता।।
कल कल करती बहती नदियां जिसके
शीतल जल से जीवन शैली सरल बनी
आज उसी धारा को हमने रोक दिया जो
कहीं सूखी तो कहीं प्रदूषण का स्रोत बनी।