छेड़ मत ज़ज्बात मेरे
छेड़ मत ज़ज्बात मेरे
हैं बुरे हालात मेरे
तन्हा हो तो मिलना हमसे
अच्छे हैं ख्यालात मेरे
अब अकेला मैं नहीं हूँ
साथ है जुल्मात मेरे
काम कोई भी न आए
सारे एहतिहात मेरे
याद आता है वो बचपन
याद हैं उत्पात मेरे
धरती पर जन्नत के जैसे
गाँव और देहात मेरे
क्या करे अब कोई ‘सागर’
फेंके हैं सकलात मेरे