” छू नहीं सके मलाल ” !!
आनन पर खिलती मुस्कानें ,
समय ने बदली चाल !!
वही शरारत भली लगे है ,
जो मन को हरषाये !
ऊपर वाला थोड़ा देता ,
ज्यादा है तरसाये !
अंबर साया ,धरा बिछौना ,
कहाँ रहे तंगहाल !!
पटरी पर हो रेल अगर तो ,
भला भला सा लगता !
हम जैसे भूखे नंगों को ,
हर कोई है ठगता !
सदा दुपहरी तपती मिलती ,
छाँव ना बनती ढाल !!
रूखी सूखी खाते हैं पर ,
खुश रहना जाने हैं !!
हम तो ठहरे यायावर हैं ,
खाक सभी छाने हैं !
दखल हमारा यहाँ वहाँ है ,
छू नहीं सके मलाल !!
किस्मत अपनी बड़ी निराली ,
लेती रोज़ परीक्षा !
संघर्षों में हम पलते हैं ,
पल पल देते दीक्षा !
सब कुछ है जी पास हमारे ,
नहीं बजाते गाल !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर( मध्यप्रदेश )